यंग इंडिया, जालंधर
संसदीय सीट जालंधर के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत के तीन बड़े आधार रहे। यह तीन बड़े आधार रहे मान, मान और मान। जिस लड़ाई को डेढ़ महीने पहले हारा हुआ मान लिया गया था लेकिन सिर्फ मान ही ऐसे शख्स थे जिन्होंने इस हार को ना मान कर खुद पूरा जिम्मा संभाल लिया और अब जब नतीजे आए हैं तो इसका पूरा मान मुख्यमंत्री मान को दिया जा रहा है। पार्टी के पास जब उम्मीदवार नहीं था तो भगवंत मान ने सुशील रिंकू को ना सिर्फ पहचाना और उन्हें आम आदमी पार्टी में आने के लिए राजी भी किया। जब वारिस पंजाब दे के चीफ अमृतपाल सिंह के खिलाफ एक्शन को लेकर एक वर्ग में नाराजगी नजर आ रही थी और इससे चुनाव प्रभावित होने का खतरा था, तब भी मुख्यमंत्री भगवंत मान ने डिप्लोमेसी की बजाय सीधा रुख अपनाया और कार्रवाई को सही ठहरा कर संकेत दे दिया कि वह अलगाववाद को बढ़ावा देने वालों का किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं करेंगे। इसके बाद उन्होंने खुद ही पूरे उपचुनाव की मुहिम को संभाला और लगातार दोनों से ऐसा माहौल बना दिया कि डेढ़ महीने पहले जो लड़ाई हारी हुई नजर आ रही थी उसमें अपने उम्मीदवार सुशील रिंकू को बड़ी जीत दिलवा दी। अब अगर आम आदमी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि यह जीत पूरी तरह से मुख्यमंत्री भगवंत मान की है तो इसमें किसी को संदेह भी नहीं होना चाहिए।
जब पार्टी को उम्मीदवार नहीं मिल रहा था तो उन्होंने सुशील रिंकू कि आप में शामिल करवा कर अभियान को धार दी। इस चेहरे को बिजली के जीरो बिल ने बड़ी ताकत दी और फिर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ऐसी मुहिम चलाई कि लाख आलोचनाओं, विवादों को पार कर लिया। इस चुनाव ने यह भी साफ कर दिया है कि लोग अब कट्टरवाद को आम जिंदगी में शामिल करने के मूड में नहीं है। चुनाव में आम आदमी पार्टी की आक्रमक नीति का अहम योगदान रहा और आप पार्टी को पता था कि जालंधर सीट जीतनी है तो पूरी तरह से कांग्रेस को डैमेज करना होगा। इसीलिए कांग्रेस के नेता को ही उम्मीदवार बनाया और फिर जहां-जहां जो कांग्रेसी नेता मिला उसे साथ मिलाने से पीछे नहीं हटे। कांग्रेश के नेताओं को शामिल करने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान खुद बार-बार जालंधर आते रहे। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ आम आदमी पार्टी सरकार की जीरो बिल नीति ने बड़ा काम किया। यह आप सरकार की रणनीति ही थी कि चुनाव से 1 सप्ताह पहले ही लोगों को बिजली के बिल भेजे गए और इन जीरो बिल ने आप के लिए सकारात्मक भूमिका निभाई। इस चुनाव को कांग्रेस से ज्यादा चौधरी परिवार के पतन के रूप में भी देखा जा रहा है। कांग्रेस के कई बड़े नेता चौधरी परिवार का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन टिकट की घोषणा के बाद दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था। कांग्रेश के इस दुर्ग का टूटना शहर की राजनीति में एक नए बदलाव का भी संकेत है। शहरों में भाजपा मजबूत हुई है और कई इलाकों में कांग्रेस का तीसरे स्थान पर जाना नए भविष्य की ओर संकेत कर रहा है। अब आम आदमी पार्टी के लिए अगले 2 से 3 महीने में संभावित नगर निगम चुनाव जीतना भी कठिन नहीं होगा।।