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कॉलोनी पर चला बुलडोज़र: 40 साल पुराना आशियाना मलबे में बदला

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चंडीगढ़। शहर के सेक्टर-38 वेस्ट में स्थित शाहपुर कॉलोनी, जो लगभग चार दशकों से हजारों लोगों का घर थी, मंगलवार को प्रशासनिक कार्रवाई के तहत ढहा दी गई। इस कॉलोनी में करीब 200 परिवार रहते थे और लगभग 450 मकानों को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू की गई।

प्रशासनिक तैयारी

कार्रवाई से पहले सोमवार रात को ही प्रशासन ने कॉलोनी की बिजली और पानी की सप्लाई काट दी थी। रातभर पुलिस बल ने इलाके को घेर लिया ताकि कोई विरोध प्रदर्शन बड़े स्तर पर न हो सके। मंगलवार सुबह जैसे ही बुलडोज़र मौके पर पहुंचे, लोग अपने घरों के बाहर इकट्ठे हो गए और विरोध जताने लगे।

प्रशासन ने दावा किया कि यह कार्रवाई पूरी तरह कानूनी है और जिन मकानों को अदालत से स्टे मिला हुआ है, उन्हें फिलहाल नहीं छुआ गया है। अधिकारियों का कहना है कि यह ज़मीन सरकारी रिकॉर्ड में “अवैध कब्ज़ा” मानी जाती है और लंबे समय से इसे खाली कराने की योजना बनाई जा रही थी।

भारी पुलिस तैनाती

स्थिति को संभालने के लिए प्रशासन ने 500 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की। पुलिस ने बैरिकेड्स लगाए और बुलडोज़रों के साथ सुरक्षा घेरा बनाया। हालांकि विरोध के बावजूद कोई बड़ा टकराव नहीं हुआ, लेकिन माहौल तनावपूर्ण बना रहा। कई बार महिलाओं और बुज़ुर्गों ने अपने घरों के सामने खड़े होकर कार्रवाई रोकने की कोशिश की, पर पुलिस ने उन्हें किनारे कर दिया।

पीड़ितों का दर्द

कॉलोनीवासियों का आरोप है कि प्रशासन ने उन्हें गुमराह किया। उनका कहना है कि उन्हें इंडस्ट्रियल एरिया में नए मकान देने का वादा किया गया था, लेकिन जो घर दिखाए गए हैं वे खुद जर्जर और रहने लायक नहीं हैं। कई मकानों की छत और दीवारें पहले से टूटी हुई हैं।

एक महिला ने रोते हुए कहा, “हमने यहां अपनी ज़िंदगी बिता दी। बच्चों की परवरिश, शादी-ब्याह सब इसी घर से जुड़े थे। अब त्योहारों से ठीक पहले हमें बेघर कर दिया गया।”
लोगों का कहना है कि त्योहारों के समय इस तरह की कार्रवाई “बेहद अमानवीय” है।

राजनीतिक हलचल

इस कार्रवाई ने राजनीतिक दलों को भी सक्रिय कर दिया है। विपक्ष ने इसे “जनविरोधी कदम” बताते हुए सरकार पर आरोप लगाया कि बिना उचित पुनर्वास योजना के लोगों को उजाड़ा जा रहा है। उनका कहना है कि जब तक नए आवास पूरी तरह तैयार नहीं हो जाते, तब तक लोगों को अपने पुराने घरों में रहने दिया जाना चाहिए।

वहीं, सरकार का तर्क है कि अवैध कब्ज़ों को हटाना ज़रूरी है और प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए योजनाएँ बनाई गई हैं।

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